Aparna Sharma

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लेखनी प्रतियोगिता -06-Jul-2023

दैनिक प्रतियोगिता 

स्वैच्छिक कविता 

*जीवन पुस्तक*📖

 पाठक की मर्यादा पा लूँ
सार समझ लूँ पुस्तक का 
इच्छा होती मैं पढ़ डालूँ,
अक्षर -अक्षर पुस्तक 📚का
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
 जीवन पुस्तक बहुत बड़ी है
स्वप्निल और सजीली भी ।
कहीं कहीं पर प्रेम से फूली,
आँसू से कुछ गीली भी ।
सचमुच इसमें अंकित बातें,
काफी मधुर रसीली भी ।
लेकिन व्याख्या कर्कश है,
पूरी तरह नुकीली भी ।
क्षीण बुद्धि हूं कैसे समझूँ
भाव समूची पुस्तक का ।
इच्छा होती मैं पढ़ डालूँ
अक्षर अक्षर पुस्तक का ।
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
कहीं चित्र हैं सीधे सादे,
भाव बहुत अलबेले हैं।
कहीं अर्थ को भूल भाल कर,
सारे शब्द अकेले हैं।।
कहीं ईर्ष्या और जलन है,
भरा हुआ प्रतिकार है ।
कहीं प्यार है,प्रीाति प्रवाहित
रस का भी संचार है ।
वीर रस का घातक मिश्रण 
कैसे पी लूँ पुस्तक का।
इच्छा होती मैं पढ़ डालूँ
अक्षर अक्षर पुस्तक का i
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
दोष औरों के खोज रही हूँ
यह तो बस नादानी है ।
खुद को देवी समझना,
 बिल्कुल बेमानी है ।
अन्तर को आनन्दित कर दे
मुझमें वह माधुर्य कहाँ ?
सारी बात समझ पाने को
मति का भी चातुर्य कहाँ ?
अनुशीलन का कर्म कठिन है,
कहता पद पद पुस्तक का ।
इच्छा होतीहैै पढ़ डालूँ,
अक्षर अक्षर पुस्तक का ।
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
संज्ञा क्रिया विशेषण सारे,
अस्त व्यस्त है मारे मारे ।
सबसे बड़ी मुसीबत है यह
 चिन्ह हुए बेबस बेचारे ।
जीवन पुस्तक को पढ़ लेना,
अज्ञ जनों का काम नहीं।
एक वाक्य में पुस्तक सारी
जिसमें कहीं विराम नहीं।
अर्थ व्याख्या कैसे समझूँ
उलझा दर्शन पुस्तक का ।
इच्छा होती मैं पढ़ डालूँ
अक्षर अक्षर पुस्तक का ।
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻

अपर्णा "गौरी " शर्मा

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3 Comments

Wooow,,,, क्या लिखा है,,,,, it's outstanding beyond the thoughts,,,, बेहतरीन अभिव्यक्ति और खूबसूरत शब्द संयोजन,,,

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Varsha_Upadhyay

07-Jul-2023 07:00 AM

वाह बहुत खूब

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बहुत खूब

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